क्या बाइबल अन्य धर्मों का विरोध करती है? मूर्ति पूजा पर बाइबल का असली संदेश

बहुत से लोगों के मन में यह सवाल आता है कि बाइबल में मूर्ति पूजा का निषेध किया गया है, तो क्या यह अन्य धर्मों के खिलाफ है? क्या बाइबल हमें गलत शिक्षा देती है? इस विषय को गहराई से समझने के लिए हमें बाइबल के सन्देश को सही तरीके से देखना होगा।

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बाइबल मूर्ति पूजा का विरोध क्यों करती है?

बाइबल में स्पष्ट रूप से लिखा गया है:

निर्गमन 20:3-5
“मेरे सामने तुझे अन्य कोई देवता न मानने चाहिए। तू अपने लिए कोई मूर्ति न बनाना, न किसी वस्तु की प्रतिमा बनाना, जो आकाश में, पृथ्वी पर, या जल में हो। तू उनके सामने न झुकना और न उनकी उपासना करना, क्योंकि मैं तेरा परमेश्वर यहोवा, जलन रखने वाला परमेश्वर हूँ।”

इस वचन का मतलब यह नहीं कि बाइबल किसी धर्म का अपमान करती है। यह हमें यह सिखाती है कि ईश्वर निर्जीव मूर्तियों में नहीं, बल्कि आत्मा में बसता है। बाइबल के अनुसार, जब हम किसी मूर्ति को ईश्वर मानकर उसकी पूजा करने लगते हैं, तो हम सच्चे ईश्वर से दूर चले जाते हैं।

क्या बाइबल अन्य धर्मों का विरोध करती है?

नहीं! बाइबल किसी भी धर्म का विरोध नहीं करती, बल्कि यह सिखाती है कि ईश्वर जीवित है और उसकी आराधना आत्मा और सच्चाई से होनी चाहिए।

यूहन्ना 4:24
“परमेश्वर आत्मा है, और जो उसकी आराधना करते हैं, उन्हें आत्मा और सच्चाई से आराधना करनी चाहिए।”

इसका अर्थ यह है कि सच्ची उपासना बाहरी दिखावे या मूर्ति के माध्यम से नहीं, बल्कि दिल से होनी चाहिए। ईश्वर को केवल किसी मूर्ति में सीमित कर देना उसकी वास्तविकता को छोटा कर देना है।

क्या मूर्तियाँ गलत हैं, या उनकी पूजा?

बाइबल कला, संस्कृति या इतिहास में मौजूद मूर्तियों के खिलाफ नहीं है। लेकिन जब कोई मूर्ति को ईश्वर मानकर उसकी पूजा करता है, तब यह ईश्वर की सच्ची आराधना से भटका हुआ कार्य माना जाता है।

रोमियों 1:25
“उन्होंने परमेश्वर के सत्य को झूठ में बदल दिया, और सृजनहार की बजाय सृष्टि की उपासना और सेवा की।”

इसका मतलब है कि जब लोग सृष्टिकर्ता (ईश्वर) को छोड़कर सृजन (निर्मित वस्तु) की पूजा करने लगते हैं, तो वे सत्य से दूर हो जाते हैं।

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यीशु मसीह का संदेश – प्रेम और स्वतंत्रता

यीशु मसीह कभी भी किसी धर्म के विरोध में नहीं थे। उन्होंने केवल सत्य को बताया और लोगों को सही राह दिखाई। उनका संदेश प्रेम और स्वतंत्रता का था।

यीशु ने कहा:

मत्ती 22:37-39
“तू प्रभु अपने परमेश्वर से अपने पूरे मन, अपनी पूरी आत्मा और अपनी पूरी बुद्धि के साथ प्रेम कर। यही पहला और सबसे बड़ा आज्ञा है। और दूसरी इसके समान है: तू अपने पड़ोसी से वैसे ही प्रेम कर जैसे तू अपने आप से करता है।”

इसका अर्थ यह है कि हमें सबसे पहले सच्चे ईश्वर से प्रेम करना चाहिए, और दूसरों के प्रति सम्मान और प्रेम बनाए रखना चाहिए। बाइबल अन्य धर्मों की निंदा करने के लिए नहीं बल्कि सत्य की ओर मार्गदर्शन करने के लिए दी गई है।

क्या मूर्ति पूजा करने से इच्छाएँ पूरी होती हैं?

बहुत से लोग मूर्तियों के सामने अपनी इच्छाएँ मांगते हैं और सोचते हैं कि इससे उनकी मनोकामनाएँ पूरी हो जाएँगी। लेकिन बाइबल हमें सिखाती है कि इच्छाएँ पूरी करने वाला कोई पत्थर, धातु या लकड़ी की बनी हुई मूर्ति नहीं, बल्कि स्वयं जीवित परमेश्वर है।

मार्कुस 11:24
“इसलिए मैं तुमसे कहता हूँ, जो कुछ भी तुम प्रार्थना में माँगते हो, विश्वास करो कि वह तुम्हें मिल गया है, और वह तुम्हारा होगा।”

ईश्वर हमारी प्रार्थनाओं को तभी सुनता है जब हम सच्चे हृदय से विश्वास और प्रेम के साथ उसे पुकारते हैं।

निष्कर्ष – बाइबल हमें क्या सिखाती है?

  • बाइबल किसी भी धर्म के खिलाफ नहीं है। यह केवल सच्चे ईश्वर की आराधना करने की शिक्षा देती है।
  • मूर्तियाँ अपने आप में गलत नहीं हैं, लेकिन यदि हम उन्हें ईश्वर मानकर पूजते हैं, तो हम सच्चे ईश्वर से दूर हो जाते हैं।
  • यीशु मसीह का संदेश प्रेम, सत्य और स्वतंत्रता का है। उन्होंने कभी भी किसी धर्म के लोगों को अपमानित नहीं किया।
  • सच्ची प्रार्थना और विश्वास से की गई विनती ही हमारे जीवन में चमत्कार लाती है।

अंतिम संदेश

बाइबल हमें जीवित परमेश्वर से संबंध बनाने की शिक्षा देती है, न कि निर्जीव वस्तुओं की पूजा करने की। हमें अपने जीवन में प्रेम, सच्चाई और विश्वास के साथ जीना चाहिए। तभी हम ईश्वर की वास्तविक उपस्थिति को अनुभव कर सकते हैं।

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